i was modifying the political boundary of Ferozguda today morning. It seems to be incomplete. So ading details like Hindi names, फिरोज़गुडा etc.
experience
Saturday, January 3, 2015
Friday, January 2, 2015
तीन दिनों का सफ़र! - 21 February 2012
तीन दिनों का सफ़र! एक एसा सफ़र जो सिर्फ मोटरबाइक पर था, मेरी जानेमन के साथ. यह शुरू हुआ तब, जब हमने एक हफ्ते पहले से ही ये सोच लिया था कि एक गाडी किराये से लेकर द्वीप में घूमने जाएँगे. कार के लिए कोशिश किया लेकिन एक लम्बे वीकेंड के कारण लोगों ने दो हफ्ते पहले ही कार सब बुक कर लिया था.
अंततः फ्लिक औं फ्लाक (Flic en Flac) के पुराने स्कूटर रेंटल ऑफिस में ही बुलाया और शुक्रवार को ही ऑफिस के बाद जाकर वहाँ से एक स्कूटर किराए से ले लिया. वापिस कई महीनों के बाद चलाने में काफी मजा आ रह था. प्रार्थना करने के बाद हमलोग Ebene के Intermart शौपिंग सेन्टर जाकर कुछ घर के उपयोगी चीजों को लिया और घर वापिस आ गए.
उस दिन ही ये सोच के रखा था कि कहाँ जाएँगे. कुचिपुची ने ग्रि-ग्रि बीच नहीं देखा था. वहाँ एक बार जाना था. फिर ब्लू-बे और इल-औ-सर्फ जैसे खूबसूरत समुद्र तटों पर भी जाने की योजना हमने बनाई थी. मैने भी वह सब नहीं देखा था. इसीलिए यह एक अच्छा अवसर था जब हम दोनों एक साथ प्रकृति की खूबसूरती को देखें. सुबह सुबह हम निकल गए। गर्मी काफी थी।
हम लोगों ने सोचा की हम गंगा तलाव होते हुए ऊपर पहाड़ियों की तरफ चलते ही जायेंगे। बोहुत ही अच्छा सफर था। एक पूरा दिन हमने घाटियों के बीच से घूमते हुए अपना सफर तय किया। बहुत ही खूबसूरत नजारा था।
तीसरा दिन पूरा Grand Baie और उत्तरी जमीन पर सफर किया। वहां का हरा हरा समुद्र काफी मनोहर था। लाइट हाउस भी देखा। लेकिन लाइट हाउस बंद होने के कारण हम लोग अंदर नहीं जा पाये। फिर भी एक सुहावना सफर था।
गर्मी ज्यादा थी। इस बात का हमें अंदाज़ा तब हुआ जब थोड़ी देर में हमारी हाथेँ और चेहरे पे झुलसने जैसी गर्मी पैदा हुई। शाम को स्कूटर लौटाकर जब हम वापिस आये तो देखा कि गर्मी से हमारे हाथों और चेहरे पे सन बर्न हैं। पहली बार ऐसा हुआ हमारे साथ। जबकि भारत में इससे ज्यादा गर्मी पड़ती है लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ था। बहरहाल, जो हुआ अच्छे के लिए हुआ। एक दो हफ्ते में ही सब ठीक हो गया था। Lacto Calamine lotion भी लगातार त्वचा पर लगाते गए।
फिर भी अपनी जानेमन के साथ बिताया समय बहुत ही मनोरम था। उसी बात की ख़ुशी है और कुछ नहीं।
अंततः फ्लिक औं फ्लाक (Flic en Flac) के पुराने स्कूटर रेंटल ऑफिस में ही बुलाया और शुक्रवार को ही ऑफिस के बाद जाकर वहाँ से एक स्कूटर किराए से ले लिया. वापिस कई महीनों के बाद चलाने में काफी मजा आ रह था. प्रार्थना करने के बाद हमलोग Ebene के Intermart शौपिंग सेन्टर जाकर कुछ घर के उपयोगी चीजों को लिया और घर वापिस आ गए.
उस दिन ही ये सोच के रखा था कि कहाँ जाएँगे. कुचिपुची ने ग्रि-ग्रि बीच नहीं देखा था. वहाँ एक बार जाना था. फिर ब्लू-बे और इल-औ-सर्फ जैसे खूबसूरत समुद्र तटों पर भी जाने की योजना हमने बनाई थी. मैने भी वह सब नहीं देखा था. इसीलिए यह एक अच्छा अवसर था जब हम दोनों एक साथ प्रकृति की खूबसूरती को देखें. सुबह सुबह हम निकल गए। गर्मी काफी थी।
हम लोगों ने सोचा की हम गंगा तलाव होते हुए ऊपर पहाड़ियों की तरफ चलते ही जायेंगे। बोहुत ही अच्छा सफर था। एक पूरा दिन हमने घाटियों के बीच से घूमते हुए अपना सफर तय किया। बहुत ही खूबसूरत नजारा था।
तीसरा दिन पूरा Grand Baie और उत्तरी जमीन पर सफर किया। वहां का हरा हरा समुद्र काफी मनोहर था। लाइट हाउस भी देखा। लेकिन लाइट हाउस बंद होने के कारण हम लोग अंदर नहीं जा पाये। फिर भी एक सुहावना सफर था।
गर्मी ज्यादा थी। इस बात का हमें अंदाज़ा तब हुआ जब थोड़ी देर में हमारी हाथेँ और चेहरे पे झुलसने जैसी गर्मी पैदा हुई। शाम को स्कूटर लौटाकर जब हम वापिस आये तो देखा कि गर्मी से हमारे हाथों और चेहरे पे सन बर्न हैं। पहली बार ऐसा हुआ हमारे साथ। जबकि भारत में इससे ज्यादा गर्मी पड़ती है लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ था। बहरहाल, जो हुआ अच्छे के लिए हुआ। एक दो हफ्ते में ही सब ठीक हो गया था। Lacto Calamine lotion भी लगातार त्वचा पर लगाते गए।
फिर भी अपनी जानेमन के साथ बिताया समय बहुत ही मनोरम था। उसी बात की ख़ुशी है और कुछ नहीं।
सड़कें चलती ही
जाती हैं,
चट्टानों के
ऊपर और
पेड़ों के
ऊपर से,
उन गुफाओं
से जहाँ
कभी भी
सूरज की
किरण पहुँची
ना हो,
ऐसी धाराएं
जो कभी
समुद्र में
जाकर मिली
ना हों.
बादलों और
नक्षत्रों के नीचे. JRR Tolkien के द्वारा
बहुत खूबसूरती
से लिखा
हुआ एक
लेख था.
दुनिया भर में
अनगिनत सुंदर
सड़कें हैं
लेकिन सच
में एक
पागलपन करने के लिए खतरे
की एक
संकेत किया
गया है,
और यह
सुंदरहो गया
है सबसे
बड़ा ड्राइविंग
सड़कों के
लिए एक
चुनौतीपूर्ण और जटिल झुकता के
बीच एक
सही मिश्रण
है की
आवश्यकता होती
है, रोमांचक
नहींसिर्फ लंबे तेज straights के साथ,
कोई यातायात
नहीं है
और विशेष
रूप से
सुंदर विचारों
के लिए
कम है.
और सुनिश्चित
करने के
लिए अपने
प्राकृतिक सौंदर्य प्रकृति एक यादगार
यात्रा सड़क
लेकिन कभी
कभी यह
मानव निर्मित
स्थलों की
यात्रा है.
Home coming
Today is January 02, 2015.
It's been a while since I had come back from Mauritius.
It was July 23, 2012, when we came back from Mauritius to India. I knew that the freedom that we enjoyed there would no longer be there once we are back. But my wife has different ideas. For her, coming back was having a lot of happiness. Indian food, close to parents, lot more savings, living in faster lifestyle, more salary, better treatment of sickness, etc.
It's been 2 - 1/2 years now and we know that coming back was not a gain. It was infact a loss in many ways. We lost :
Meanwhile friends from Mauritius still call us back and expect us to be back there anytime in future. Its a good hope. But lets see what God has in mind.
It's been a while since I had come back from Mauritius.
It was July 23, 2012, when we came back from Mauritius to India. I knew that the freedom that we enjoyed there would no longer be there once we are back. But my wife has different ideas. For her, coming back was having a lot of happiness. Indian food, close to parents, lot more savings, living in faster lifestyle, more salary, better treatment of sickness, etc.
It's been 2 - 1/2 years now and we know that coming back was not a gain. It was infact a loss in many ways. We lost :
- Clean processed drinking water - 24 hrs through tap.
- Greenery (amount of green cover was refreshing to the eyes).
- Less vehicular pollution levels. mostly clean air in residences.
- Less suspended particulates causing respiratory diseases.
- great lettuces which prompted us to have sandwiches and salads from time-to-time.
- Great Dholpuris and rotis available in all major streets.
- Great beaches and scenic valleys and mountains, which we often used to travel on weekends or holidays.
- great living in a fully furnished housing with all responsibility of handling it well as a young couple.
- Great Church, that we used to visit every Sunday mornings.
- Great youth group comprised of little to bit older people, their outings and meetings near the beach.
- Tax free foreign currency account.
- Free healthcare services even for the expatriates.
- Shopping in all possible international shopping markets and malls ranging from Spar, Cyber-city, Shop-rite, Pick n Pay, etc. Great range of international food, home, electronics and travel items.
- International travel atleast once in an year with goodies for our relatives and friends. Exposure to International chocolates and wines.
Meanwhile friends from Mauritius still call us back and expect us to be back there anytime in future. Its a good hope. But lets see what God has in mind.
Monday, April 9, 2012
9 simple steps to write or start a novel
Just as every tree is different but still recognizably a tree, every story is different but contains elements that make it a story. By defining those before you begin you clarify the scope of your work, identify your themes, and create the story you meant to write.
At Norwescon 2011 I sat in on a session calledOutline Your Novel in 90-minutes led by Mark Teppo. I’ll give you the brief, readable, synthesized version. Answer 9 questions and create 25 chapter titles and you’re there.
Here are the 9 questions to create a novel:
1.) Why did you choose this particular protagonist? (What’s so special that it HAD to be this person for this story?)
2.) What is the protagonist doing right now? (Enter the story as late as possible, as Kurt Vonnegut said. Don’t start with the back story, you’ll filter that in later.)
3.) What external stressor is applied to the protagonist? (What outside force changes everything for the protagonist?)
4.) What is the protagonist’s goal? (You must be clear on this. Honest.)
5.) What are the obstacles along the way? (Some structures say there should be 3. Remember, things must get worse after every obstacle.)
6.) What qualities of the protagonist helps or hinder him/her to overcome these obstacles (Your protagonist must operate at the best of their abilities, or the reader will call them idiot and bail. Are the obstacles truly hard enough to show your character’s best?)
7.) How will the protagonist change over the course of the story? (That is, after all, the story.)
8.) What are you trying to say? Why are you writing this particular story?
9.) What sacrifice levels the playing field? Remember, this journey is hard and the protagonist must demonstrate she/he is worthy to win. (Remember to show the protagonist’s reaction to the sacrifice. This is the moment of black despair– drag it out for all it is worth. Bigger the disaster, the longer you can extend it.)
Now, with those 9 questions answered to your satisfaction, try to fill in a 25 chapter, 75,000 word outline. Chapters 1-6 are the introduction to the world and characters. By chapter 5 the protagonists must have his goal (Q. 4). Chapter 5 is often the big obstacle.
Chapters 7-18 are the middle of your book. This is the fun, meaty goodness with your obstacles (Q. 5). Mark Teppo told us that if you get stuck while outlining, often around chapter 12, simply write “sex”. The chapter after that is, “things get worse.” and move on. He claims it really works. Let me know what you think.
Chapters 19-25 depict the heroic act to victory. Remember the sacrifice at chapter 23 (Q. 9) and to demonstrate the change the journey of the book has brought about in chapter 25 (Q. 7)
Wasn’t that easy?
Wednesday, January 11, 2012
क्या भारतीय टीम पर्थ में इतिहास दोहराएगी?
भारतीय टीम पिछली बार जब पर्थ में खेली थी, अपनी पूरी जी-जान लेगा दी थी. क्योंकि उसके पहले भारतीय टीम को काफी अवहेलना का सामना करना पढ़ा था. मंकी-गेट त्रासदी ने हरभजन और साथी खिलाडियों को भी बहुत गुस्सैल बनाया था. पूरी भारत की मीडिया किसी तरह ऑस्ट्रेलिया को सबक सिखाने के लिए तुली हुई थी. भारत में एम्पायर स्टीव बकनर का पुतला जलाया जा रह था और विश्वभर में मीडिया इन सब को काफी रुचि के साथ लोगों को परोस रहा था.
दोनों देशों के क्रिकेट संबंधों में तनाव थे. सारे पारे गरम थे. और यह वही अवसर था जब टीम इंडिया को कुछ भी खोने के लिए और कुछ नहीं था. ज़हीर खान के चोटिल हो जाने के बाद इशांत शर्मा को दूसरे टेस्ट में खिलाया गया था. लेकिन वह ठीक से गेंदबाजी नहीं कर पाया. भारत के पास और कोई उपाय नहीं था, सिवाय इसके कि वह इशांत को खिलाये. लेकिन पर्थ टेस्ट में इशांत ने जो जलवा दिखाया, वो काबिलेतारीफ था.
भारतीय टीम ने पहली पारी में बहुत अच्छी बल्लेबाजी की और सचिन और लक्ष्मण के शतक की बदौलत 500 से ऊपर का स्कोर बनाया. उसके बाद ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने अच्छी शुरुआत की. पर पहले विकेट के पतन के बाद आये कप्तान रिकी पोंटिंग को गेंद डालने आये इशांत ने एक जबरदस्त गेंदबाजी का नमूना वहां पर्थ में पेश किया. पोंटिंग को जरा सा भी मौका नहीं दिया क्रीज़ पर टिकने का. लगातार ऑफ-स्टंप के बाहर लाइन और लेंग्थ रखकर उस स्पेल में बहुत बुरी तरह पोंटिंग को परेशान किया.
वहीँ से इशांत को सारी दुनिया ने जाना. सिर्फ उन्नीस की उम्र में ही दुनिया के शीर्ष बल्लेबाज को इस तरह किसी भी भारतीय गेंदबाज ने आजतक परेशान नहीं किया था. लेकिन पर्थ का वह मैच भारत ने सिर्फ इशांत की वजह से नहीं जीता. भारतीय गेंदबाजों ने जीत दिलाई. 72 रनों से वह जीत उस चोट पर भी मरहम लगाने के लिए उचित थी जो सिर्फ 2 हफ़्तों पहले सिडनी में लगी थी. सारा देश जाग गया. सबको लगा की बदला ले लिया गया है. ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ही नहीं पर देश के क्रिकेट प्रेमी भी इस बात को समझ गए कि एक टीम जिसे सिडनी में न्याय नहीं मिला, उसे पूरी तरह न्याय मिल गया है.
जिस पर्थ की तेज पिच पर विशेषज्ञयों की राय में भारतीय टीम घुटने टेकने वाली थी, उसी पिच पर उन्होंने अपनी टीम को ही लुढ़कते हुए देखा.
करीब चार साल बाद फिर से ये टीमें आमने-सामने हैं. उसी जगह. उसी भरोसे के साथ. देखना है क्या होता है. भारतीय क्रिकेट टीम के पास काफी चीजों को खरा साबित करने का मौका है. क्योंकि विशेषज्ञ अभी से 4-0 का मुहर इस टेस्ट श्रंखला पर लेगा चुके हैं.
दोनों देशों के क्रिकेट संबंधों में तनाव थे. सारे पारे गरम थे. और यह वही अवसर था जब टीम इंडिया को कुछ भी खोने के लिए और कुछ नहीं था. ज़हीर खान के चोटिल हो जाने के बाद इशांत शर्मा को दूसरे टेस्ट में खिलाया गया था. लेकिन वह ठीक से गेंदबाजी नहीं कर पाया. भारत के पास और कोई उपाय नहीं था, सिवाय इसके कि वह इशांत को खिलाये. लेकिन पर्थ टेस्ट में इशांत ने जो जलवा दिखाया, वो काबिलेतारीफ था.
भारतीय टीम ने पहली पारी में बहुत अच्छी बल्लेबाजी की और सचिन और लक्ष्मण के शतक की बदौलत 500 से ऊपर का स्कोर बनाया. उसके बाद ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने अच्छी शुरुआत की. पर पहले विकेट के पतन के बाद आये कप्तान रिकी पोंटिंग को गेंद डालने आये इशांत ने एक जबरदस्त गेंदबाजी का नमूना वहां पर्थ में पेश किया. पोंटिंग को जरा सा भी मौका नहीं दिया क्रीज़ पर टिकने का. लगातार ऑफ-स्टंप के बाहर लाइन और लेंग्थ रखकर उस स्पेल में बहुत बुरी तरह पोंटिंग को परेशान किया.
वहीँ से इशांत को सारी दुनिया ने जाना. सिर्फ उन्नीस की उम्र में ही दुनिया के शीर्ष बल्लेबाज को इस तरह किसी भी भारतीय गेंदबाज ने आजतक परेशान नहीं किया था. लेकिन पर्थ का वह मैच भारत ने सिर्फ इशांत की वजह से नहीं जीता. भारतीय गेंदबाजों ने जीत दिलाई. 72 रनों से वह जीत उस चोट पर भी मरहम लगाने के लिए उचित थी जो सिर्फ 2 हफ़्तों पहले सिडनी में लगी थी. सारा देश जाग गया. सबको लगा की बदला ले लिया गया है. ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ही नहीं पर देश के क्रिकेट प्रेमी भी इस बात को समझ गए कि एक टीम जिसे सिडनी में न्याय नहीं मिला, उसे पूरी तरह न्याय मिल गया है.
जिस पर्थ की तेज पिच पर विशेषज्ञयों की राय में भारतीय टीम घुटने टेकने वाली थी, उसी पिच पर उन्होंने अपनी टीम को ही लुढ़कते हुए देखा.
करीब चार साल बाद फिर से ये टीमें आमने-सामने हैं. उसी जगह. उसी भरोसे के साथ. देखना है क्या होता है. भारतीय क्रिकेट टीम के पास काफी चीजों को खरा साबित करने का मौका है. क्योंकि विशेषज्ञ अभी से 4-0 का मुहर इस टेस्ट श्रंखला पर लेगा चुके हैं.
Monday, January 9, 2012
प्रकृति के नजदीक
आज एक नयी सुबह है. एक नया एहसास. सुबह की ताज़ी-ताज़ी हवा और सुन्दर प्रकृति के बीच से घर से ऑफिस का सफ़र बड़ा ही मनोहर है. सुन्दर-सुन्दर घास जो रोड के बगल में ही उगे हुए हों. जिनको काफी तकनीकी रूप से एक ही आकार में काटा गया हो, यह सब दृश्य कितना मनोरम होता है. आँखों को एक सुकून मिलता है. बहुत धूआँ नहीं, बहुत प्रदुषण नहीं. ऑफिस में आकर काम बहुत अच्छी तरह शुरू कर सकते हैं.
सुबह उतना इसीलिए लाभदायक होता है. तभी तो हमारे पूर्वज और माता-पिता भी इतनी सुबह करीब 4.30 बजे उठ जाते थे. उसके बाद ठंडे पानी में स्नान और भगवान् को याद किया जाता था. फिर व्यायाम और सुबह की ताज़ी हवा में थोड़ा समय टहलकर घर वापिस आकर सुबह का अख़बार पड़ना एक अच्छी आदत होती थी. आजकल वो सब लोग भूल रहें हैं. सुबह उठकर नहाना नहीं और टी.वी. के सामने बैठकर ही दूसरे लोगों के द्वारा बोले हुए भगवन के वचनों को सुनना. मुझे नहीं पता कितने लोग अख़बार घर पर मंगवाकर आजकल वाकई में पढ़ते हैं. या सिर्फ दिखने के लिए लेतें हैं. कम-से-कम उनके बच्चे ही पढ़ लें, तो बड़ी बात होगी.
नई संस्कृति में जब हम पुरानी चीजों को भूल रहें हैं, उन पलों में भी कुछ लोग हैं जो प्रकृति को चाहते हैं और उसके मध्य में जीना चाहते हैं. हम मूल रूप से इंसान हैं जो प्रकृति के मध्य में जीना ज्यादा पसंद करते हैं. बस अपने आपको और ऊपर उठाने के लिए बड़ी-बड़ी इमारतें बनाते गए और यह भूल गए की एक दिन हम ही उन सबसे ऊब जाएँगे.
सुबह उतना इसीलिए लाभदायक होता है. तभी तो हमारे पूर्वज और माता-पिता भी इतनी सुबह करीब 4.30 बजे उठ जाते थे. उसके बाद ठंडे पानी में स्नान और भगवान् को याद किया जाता था. फिर व्यायाम और सुबह की ताज़ी हवा में थोड़ा समय टहलकर घर वापिस आकर सुबह का अख़बार पड़ना एक अच्छी आदत होती थी. आजकल वो सब लोग भूल रहें हैं. सुबह उठकर नहाना नहीं और टी.वी. के सामने बैठकर ही दूसरे लोगों के द्वारा बोले हुए भगवन के वचनों को सुनना. मुझे नहीं पता कितने लोग अख़बार घर पर मंगवाकर आजकल वाकई में पढ़ते हैं. या सिर्फ दिखने के लिए लेतें हैं. कम-से-कम उनके बच्चे ही पढ़ लें, तो बड़ी बात होगी.
नई संस्कृति में जब हम पुरानी चीजों को भूल रहें हैं, उन पलों में भी कुछ लोग हैं जो प्रकृति को चाहते हैं और उसके मध्य में जीना चाहते हैं. हम मूल रूप से इंसान हैं जो प्रकृति के मध्य में जीना ज्यादा पसंद करते हैं. बस अपने आपको और ऊपर उठाने के लिए बड़ी-बड़ी इमारतें बनाते गए और यह भूल गए की एक दिन हम ही उन सबसे ऊब जाएँगे.
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