Monday, January 9, 2012

प्रकृति के नजदीक


आज एक नयी सुबह है. एक नया एहसास. सुबह की ताज़ी-ताज़ी हवा और सुन्दर प्रकृति के बीच से घर से ऑफिस का सफ़र बड़ा ही मनोहर है. सुन्दर-सुन्दर घास जो रोड के बगल में ही उगे हुए हों. जिनको काफी तकनीकी रूप से एक ही आकार में काटा गया हो, यह सब दृश्य कितना मनोरम होता है. आँखों को एक सुकून मिलता है. बहुत धूआँ नहीं, बहुत प्रदुषण नहीं. ऑफिस में आकर काम बहुत अच्छी तरह शुरू कर सकते हैं.

सुबह उतना इसीलिए लाभदायक होता है. तभी तो हमारे पूर्वज और माता-पिता भी इतनी सुबह करीब 4.30 बजे उठ जाते थे. उसके बाद ठंडे पानी में स्नान और भगवान् को याद किया जाता था. फिर व्यायाम और सुबह की ताज़ी हवा में थोड़ा समय टहलकर घर वापिस आकर सुबह का अख़बार पड़ना एक अच्छी आदत होती थी. आजकल वो सब लोग भूल रहें हैं. सुबह उठकर नहाना नहीं और टी.वी. के सामने बैठकर ही दूसरे लोगों के द्वारा बोले हुए भगवन के वचनों को सुनना. मुझे नहीं पता कितने लोग अख़बार घर पर मंगवाकर आजकल वाकई में पढ़ते हैं. या सिर्फ दिखने के लिए लेतें हैं. कम-से-कम उनके बच्चे ही पढ़ लें, तो बड़ी बात होगी.

नई संस्कृति में जब हम पुरानी चीजों को भूल रहें हैं, उन पलों में भी कुछ लोग हैं जो प्रकृति को चाहते हैं और उसके मध्य में जीना चाहते हैं. हम मूल रूप से इंसान हैं जो प्रकृति के मध्य में जीना ज्यादा पसंद करते हैं. बस अपने आपको और ऊपर उठाने के लिए बड़ी-बड़ी इमारतें बनाते गए और यह भूल गए की एक दिन हम ही उन सबसे ऊब जाएँगे.

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